मंगला गौरी पूजा वरत की कहानी
व्रत की कहानी :-
एक नगर में एक व्यापारी अपनी धर्म पत्नी के साथ सुखी से जीवन व्यतीत कर रहा था। उसे धन -धान्य की कोई कमी नहीं थी। लेकिन वह निसंतान था यानि उसके कोई संतान नहीं थी।
इसलिए सारी सुख समृद्धि होते हुए भी वे दोनों पति पत्नी जीवन में प्रसन्न नहीं थे। खूब पूजा उपासना करने के पश्चात उन्हें पुत्र का वर प्राप्त हुआ ।
पर ज्योतिषियों ने कहा कि वह अल्प आयु है और 17 वर्ष का पूर्ण होते ही उसकी अकाल मृत्यु हो जाएगी। इस बात को जान जाने के बाद पति-पत्नी और भी दुखित हो गए। लेकिन उन्होंने इसे ही अपनी और पुत्र की किस्मत मान लि।
कुछ वर्ष बाद उन्होंने अपने बेटे की शादी एक सुंदर और सुशील सु -कन्या से कर दी। वह लड़की सदा से ही मंगला गौरी का व्रत व् पूजन करती और मांता पार्वती का विधि- विधान से पूजन करती थीं।
मंगलागौरी वरत के सौभाग्य से लड़की को अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त था। इसके फल – स्वरुप सेठ के बेटे की अकाल मृत्यु टल गई और उसे दीर्घ आयु प्राप्त हुई।
पूजा से संबंधित जरूरी बातें
पूजन विधि हर बार ऐसे ही होगी , चौकी या लकड़ी का पाटा पहले दिन ही लगाना होगा l जो आखरी दिन तक ऐसे ही लगी रहेगी, केवल चौकी या लकड़ी के पाटे पर चढ़ाई गयी सामाग्री अगले दिन उठेगी l और वह आप मंदिर में जा कर दे सकते हैैं नहीं तो किसी भी गरीब व्यक्ति को दे दें l अगर कोई लेने वाले न मिले तो गाय माता को खिला दें।
चौकी या लकड़ी का पाटे पर से कुछ और सामान या सामग्री न हटाए l जैसे, गेहूं और चावल की ढेरी, गणपति व् ,गौरी की प्रतिमा,ये आखरी दिन उठेगी, माता का सिंगार हर बार उसी सुहाग के सामान से करना जो आपने चढ़ाया है अथवा जो पहले दिन पूजा में शामिल की थी
माता का सिंगार उतारना नहीं है उसी पर हर बार करना है केवल लास्ट मंगलवार को चूड़ियां उतार कर कही भी अलग रख दें और मिटटी की मूर्ती को किसी साफ़ बहते जल में बहा दें, ये कार्य घर के किसी भी गमले में कर सकते हैं।
लास्ट मंगलवार को उद्यापन विधि करें, उसके लिए सारी पूजा हर रोज़ की तरह से ही करनी है l परन्तु लास्ट मंगलवार को सारा सुहाग का सामान चढ़ेगा l और अगले दिन बुधवार को ये सभी सुहाग का सामान किसी शादी -शुदा स्त्री को देकर आशीष प्राप्त करें।