।।ग़ज़ल गीता।।
भगवान् श्री कृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र की भूमि पर गीता का उपदेश दिया | तो प्रिय पाठको मैं आज आपको गीता का पूरा सार एक कविता अथवा ग़ज़ल के रूप में बता रही हु |
इसके पठन मात्र से सम्पूर्ण गीता का फल प्राप्त होता है | जिसके पढ़ने से मनुष्य की सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है |
जैसाकि ये एक कविता अथवा ग़ज़ल के रूप में है इसको कण्ठस्त करना बोहोत ही सरल है | हमारे शास्त्रों में इसका पूर्ण वर्णन है |
इसका आप प्रतिदिन घर में पाठ करे और प्रभु नारायण हरी की कृपा प्राप्त करे |
।। श्रीहरिः।।
प्रथमहिं गुरुको शीश नवाऊँ । हरिचरणोंमें ध्यान लगाऊँ ।
गजल सुनाऊँ अद्धत यार । धारणसे हो बेड़ा पार ।।
अर्जुन कहे सुनो भगवाना । अपने रूप बताये नाना ।
उनका मैं कछु भेद न जाना । किरपा कर फिर कहो सुजाना ।।
जो कोई तुमको नित ध्यावे । भक्तिभावसे चित्त लगावे ।
रात दिवस तुमरे गुण गावे । तुमसे दूजा मन नहिं भावे ।।
तुमरा नाम जपे दिन रात । और करे नहिं दूजी बात ।
दुजा निराकारको ध्यावे । अक्षर अलख अनादि बतावे ।।
दोनों ध्यान लगानेवाला ।उनमें कुण उत्तम नंदलाला ।
अर्जुनसे बोले भगवान् । सुन प्यारे कछु देकर ध्यान ।।
मेरा नाम जपै जपवावे । नेत्रोंमें प्रभाश्रू छावे ।
मुझ बिनु और कछू नहिं चावे । रात दिवस मेरा गुण गावे ।।
सुनकर मेरा नामोच्चार । उठै रोम तन बारम्बार ।
जिनका क्षण टूटै नहिं तार । उनकी श्रद्धा अटल अपार ।।
मुझमें जुड़कर ध्यान लगावे । ध्यान समय विह्वल हो जावे ।
कंठ रुके बोला नहिं जावे । मन बुधि मेरे माँहि समावे ।।
लज्जा भय रु बिसारे मान । अपना रहे न तनका ज्ञान ।
ऐसे जो मन ध्यान लगावे । सो योगिनमें श्रेष्ठ कहावे ।।
जो कोई ध्यावे निर्गुण रूप । पूर्ण ब्रह्म अरु अचल अनूप ।
निराकार सब बेद बतावे । मन बुद्धी जहँ थाह न पावे ।।
जिसका कबहुँ न होवे नाश । ब्यापक सबमें ज्यों आकाश ।
अटल अनादी आनन्दघन । जाने बिरला योगीजन ।।
ऐसा करे निरन्तर ध्यान । सबको समझे एक समान ।
मन इन्द्रिय अपने वश राखे । विषयनके सुख कबहुँ न चाखे ।।
सब जीवों के हितमें रत । ऐसा उनका सच्चा मत ।
वह भी मेरे ही को पाते । निश्चय परमा गतिको जाते ।।
फल दोनोंका एक समान । किन्तु कठिन है निर्गुण ध्यान ।
जबतक है मनमें अभिमान । तबतक होना मुश्किल ज्ञान ।।
जिनका है निर्गुणमें प्रेम । उनका दुर्घट साधन नेम ।
मन टिकनेको नहीं अधार । इससे साधन कठिन अपार ।।
सगुण ब्रह्मका सुगम उपाय । सो मैं तुझको दिया बताय ।
यज्ञ दानादि कर्म अपारा । मेरे अर्पण कर कर सारा ।।
अटल लगावे मेरा ध्यान । समझे मुझको प्राण समान ।
सब दुनियाँसे तोड़े प्रीत । मुझको समझे अपना मीत ।।
प्रेममग्न हो अती अपार । समझे यह संसार असार ।
जिसका मन नित मुझमें यार । उनसे करता मैं अति प्यार ।।
केवट बनकर नाव चलाऊँ । भवसागरके पार लगाऊँ ।
यह है सबसे उत्तम ज्ञान । इससे कर तू मेरा ध्यान ।।
फिर होवेगा मोहिं समान । यह कहना मम सच्चा जान ।
जो चाले इसके अनुसार । वह भी हो भवसागर पार ।।
“जो मनुष्य ग़ज़ल गीता का नित्य प्रतिदिन पाठ करता है, उसको जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलती हैं “
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